Wednesday, 26 June 2019

SAMANT GOEL - सामंत गोयल बने रॉ चीफ

सामंत गोयल बने रॉ चीफ, बालाकोट एयर स्ट्राइक में निभाई थी अहम भूमिका



बालाकोट एयर स्ट्राइक (balakot air strike) में अहम भूमिका निभाने वाले आईपीएस अधिकारी सामंत गोयल को देश की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ (RAW) का प्रमुख बनाया गया है। वहीं, आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार को इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी का निदेशक बनाया गया है।

दोनों ही 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। केंद्र सरकार ने दोनों अधिकारियों को अहम जिम्मेदारी सौंपी है। सामंत गोयल मौजूदा रॉ चीफ अनिल कुमार धस्माना की जगह लेंगे, जो ढाई साल तक रॉ का शानदार नेतृत्व करने के बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। गोयल पंजाब कैडर के 1984 बैच के अफसर हैं। 

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"हमारा वैश्य समाज"

1990 के दौर में जब पंजाब उग्रवाद की चपेट में था, तब सामंत गोयल ने सराहनीय कार्य करते हुए उग्रवाद के खिलाफ कई अभियान चलाए थे। बता दें कि सामंत गोयल ने ही 26 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में हुए एयर स्ट्राइक की प्लानिंग की थी। पुलवामा में आतंकियों ने सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया था, जिसमें 40 से ज्यादा जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की थी और आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूत किया था। 



Monday, 24 June 2019

DINESH AGRAWAL - INDIAMART - दिल्ली का ऑनलाइन सदर बाजार

इंडियामार्ट / 40 हजार रुपए से बना डाला दिल्ली का ऑनलाइन सदर बाजार, अब है 430 करोड़ का कारोबार



नई दिल्ली. दिल्ली का सदर बाजार, उत्तर भारत का सबसे मशहूर थोक बाजार है। जहां सुई से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान तक थोक दाम पर मिलते हैं। जहां सैकड़ों नहीं, हजारों कारोबारी रोजाना व्यापार करने आते हैं। इस प्रकार के दूसरे बाजार की परिकल्पना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। लेकिन एक बीटेक ग्रेजुएट ने मात्र एक कंप्यूटर और 40,000 रुपए की पूंजी से ऑनलाइन सदर बाजार बना डाला। यहां 5 करोड़ से अधिक प्रोडक्ट का कारोबार होता है।


लाखों हैं रजिस्टर्ड विक्रेता


इस ऑनलाइन थोक बाजार में 6 करोड़ खरीदार तो 47 लाख रजिस्टर्ड विक्रेता हैं। इनमें से 10 लाख से अधिकत तो मैन्यूफैक्चरर्स हैं। इस बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) ऑनलाइन बाजार का नाम है इंडिया मार्ट। जहां वित्त वर्ष 2017-18 में 430 करोड़ रुपए का कारोबार किया गया। हम बात कर रहे हैं इसके संस्थापक एवं सीईओ दिनेश अग्रवाल की। कंपनी ने अपना आईपीओ भी लॉन्च कर दिया है, जो 26 जून तक खुला रहेगा।

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" हमारा वैश्य समाज"


हर सेकंड 20 क्रेता-विक्रेताओं का मिलन


अग्रवाल ने मनी भास्कर को बताया कि इंडियामार्ट के प्लेटफार्म पर हर सेकेंड 20 क्रेता-विक्रेताओं का मिलन (मैच) होता है। यानी एक दिन में यह आंकड़ा 20 लाख और हर महीने 4.5 करोड़ तक पहुंच जाता है। अग्रवाल ने बताया कि कंपनी में 3500 लोगों को डायरेक्ट रोजगार मिला हुआ है। राजनैतिक एवं कारोबारी घराने से ताल्लुक रखने वाले अग्रवाल ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री ली है। अग्रवाल ने बताया कि उनके दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे और 1957 में बहराइच इलाके से एमएलए भी रहे। कानपुर से बीटेक की डिग्री लेने के बाद 1992-95 तक उन्होंने विदेश में नौकरी की। 1995 में भारत में इंटरनेट लॉन्च हुआ, तब वह अमेरिका में एचसीएल में नौकरी करते थे। लेकिन तभी उन्होंने सोच लिया था कि अब कारोबार करना है। अग्रवाल ने बताया कि 1996 में उन्होंने एक कंप्यूटर और 40,000 रुपए से इंडियामार्ट की शुरुआत की।


साभार : मनिभास्कर.कॉम 

Sunday, 23 June 2019

हिन्दू धर्म मे वैश्य समाज का योगदान



वैश्य समाज सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार व गौरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहा है । मनुस्मृति में वैश्य समाज के लिए वर्णित कर्तव्य अध्ययन, दान, व्यापार, पशु रक्षा व गौसेवा का पूरी तरह पालन कर रहा है । भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार, गौसेवा, धार्मिक एवं नैतिक साहित्य की अभिवृद्धि आदि पर वैश्य समाज के दान के प्रमुख बिंदु रहे हैं । उनकी सेवाओं का प्रसार मानव मात्र से लेकर पशु-पक्षियों, चर-अचर व सृष्टि के समस्त जीवों के लिए है ।

◆ हिन्दू ग्रंथों की प्राचीन पाण्डुलिपियों को खोज के उनका प्रकाशन

सन् 1923 में सेठ जी जयदयाल गोयन्दका और सेठ घनश्याम दास जालान ने गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना की। इन्होंने प्राचीन हिन्दू ग्रंथों की अधिक से अधिक पुरानी प्रति खोज कर उसका प्रकाशन किया। इन्होंने संस्कृत और विभिन्न भाषायों के विद्वान लोगों को बुला के हर ग्रंथ का अनुवाद विभिन्न भाषायों में करके हिन्दू ग्रंथों का प्रचार प्रसार किया। 

1871 में सेठ गंगाविष्णु दास बजाज और खेमराज कृष्णदास बजाज ने वेंकेटेश्वर प्रेस की स्थापना की थी । जिसने भी हिन्दू ग्रंथों के प्रकाशन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

◆ पूरे भारत वर्ष में भव्य हिन्दू मंदिरों का निर्माण

"यह जाती अपनी उदारता और दानशीलता के कारण ब्राह्मणों की सच्ची हितैषी व हमारे समय में मंदिरों का निर्माण करने वाली मुख्य जाती थी ।" ~ W. Crook

800 वर्ष के दिल्ली पर मुग़लों और अंग्रेजों के शाशन के पश्च्यात 1938 में दिल्ली के पहले हिन्दू मंदिर (लक्ष्मी नारायण मंदिर) का निर्माण बिरला परिवार ने किया था। हिन्दू एकता के लिए खुद घनश्याम दास बिरला जी दलितों को साथ लेके मंदिर में गए। बिरला घराने ने पूरे भारत वर्ष में 20 भव्य हिन्दू मंदिरों का निर्माण किया था जिसमें ग्वालियर का सूर्यमंदिर, बनारस हिन्दू विश्वविधयालय परिसर में बना काशी विश्वनाथ मंदिर, हैदराबद का राधा कृष्ण मंदिर आदि हैं।

गुप्त काल को भारत का स्वर्णयुग कहा गया है । उसने भारत वर्ष में कई भव्य और विशाल मंदिरों का निर्माण किया था।जिनमें देवगढ़ का दशावतार मंदिर, कानपुर का भितराओं मंदिर आदि हैं।

◆ राम जन्मभूमि आंदोलन में वैश्य समाज की भूमिका

अयोध्या जन्मभूमि आंदोलन विहिप अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल जी के नेतृत्व में शुरू हुआ। उन्होंने भारतवर्ष में यात्रा करके चारों शंकराचार्यों, अनेकों साधु-संतों का आशीर्वाद लेकर और समस्त सनातनी समाज को एकजुट किया। जन्मभूमि के लिए आंदोलन चलाया और कई बड़ी रैलियां की पूरे देश मे। ये आंदोलन के दौरान पुलिस की लाठीचार्ज की वजह से घायल भी हुए ।

रामजन्मभूमि आंदोलन में अनेको वैश्यों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और अपनी जान की आहूति भी दी। कलकत्ता से दो मारवाड़ी युवक भाई राम कोठारी और शरद कोठारी पैदल चल के अयोध्या पहुंचे और रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए बलिदान दिया।

◆ जजिया कर से हिंदुओं की रक्षा 

मुग़लों के काल में हिंदुओं पे जजिया कर लगाया गया था। सिर्फ हिन्दू होने की वजह से उनसे भारी कर लिया जाता था जो की आम आदमी चुकाने में समर्थ नहीं था। इतिहास में प्रसंग है की तब ग्राम के नगरसेठ पूरे ग्राम का जजिया कर भर देते थे जिससे उन्हें मुग़लों के अत्याचार से बचाया जा सके।

राजा रतन चंद सय्यद बंधुओं के दीवान और मित्र थे। ये अग्रवाल परिवार से थे। इनकी गिनती सय्यद बंधुओं के साथ मुग़ल साम्राज्य के किंगमेकर में होती थी। मुग़ल काल में हिंदुओं को शाशन में उचित पद नहीं मिलते थे तब इन्होंने हिंदुओं की शिक्षा व्यवस्था में ध्यान दिया और उन्हें शाशन में ऊंचे पद दिलवाए। इन्होंने अपने समय में हिंदुओं पर से जजिया कर हटवा दिया था ।


वैश्य समाज सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार व गौरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहा है । मनुस्मृति में वैश्य समाज के लिए वर्णित कर्तव्य अध्ययन, दान, व्यापार, पशु रक्षा व गौसेवा का पूरी तरह पालन कर रहा है । भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार, गौसेवा, धार्मिक एवं नैतिक साहित्य की अभिवृद्धि आदि पर वैश्य समाज के दान के प्रमुख बिंदु रहे हैं । उनकी सेवाओं का प्रसार मानव मात्र से लेकर पशु-पक्षियों, चर-अचर व सृष्टि के समस्त जीवों के लिए है ।


◆ गौवंश की रक्षा में वैश्य समाज की भूमिका


गौवंश की रक्षा में अग्रवालों के नवरत्न लाला हरदेव सहाय का नाम अग्रणी रूप से लिया जाना चाहिये। इन्होंने गौवंश की रक्षा के लिए 1954 में गौधन नाम से पत्रिका की शुरुवात की। लाला जी को तथ्यों के साथ पता लगा कि पंजाब व राजस्थान से भारी संख्या में गाय बैलों की तस्करी कर उन्हें पाकिस्तान के कसाईखानों में भेजा जाता है। इस जानकारी ने उन्हें उद्वेलित कर दिया। लाला जी ने 31 जुलाई 1956 को प्रतिनिधि मंडल के साथ राष्ट्रपति भवन जाकर राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद से भेंट कर उन्हें गायों की तस्करी कर पाकिस्तान ले जाए जाने तथा देशभर में प्रतिदिन लाखों गायों की हत्या किए जाने की जानकारी दी। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से खादी कमीशन की तरह गोरक्षा के लिए अलग से संवैधानिक बोर्ड का गठन कर देश भर में गोहत्या पर रोक लगाने का मार्ग प्रशस्त किए जाने का सुझाव दिया।

सेठ रामकृष्ण डालमिया अनन्य गौभक्त थे। सन् 1978 में गौहत्या के विरोध के लिए आमरण अनशन किया और अनशन के दौरान ही अपनी जीवन लीला समाप्त की।

◆ सात्विक भोजन के प्रचार-प्रसार में वैश्य समाज की भूमिका

"वैश्य युगांतर से ही मांसभक्षण के विरोधी रहे और आज भी अधिकांश वैश्य परिवारों में मांस भक्षण नहीं पाया जाता।" ~ जातिभास्कर, पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र

अग्रवालों के पूर्वज महाराज अग्रसेन ने अपने राज्य में पशुबलि निषेध की थी। उन्होंने अपने राज्य में शाकाहारी भोजन एवं नियम से रहन-सहन का कानून बनाया। अग्रवाल समाज उन्ही के पदचिह्न पर चलके सात्विक भोजन का प्रचार-प्रसार करता है।

हिन्दू जाग्रति का शंखनाद करने वाले तथा अनेक पत्र पत्रिकाओं का संपादन करने वाले श्री अयोध्या प्रसाद गोयल जी के पिता श्री रामशरणदास जी ने भी जेल में रहकर ६ माह तक केवल नमक को पानी में घोलकर रोटी इसलिये खाई, क्योंकि जेल में मिलने वाली सब्जी में प्याज रहता है था, उनके मौन सत्याग्रह की आखिर में विजय हुई तथा बिना प्याज की सब्जी इनके लिये अलग से बनने की जेल अधिकारियों ने मंजूरी दी।

◆ वैश्य समाज की भामाशाही परंपरा

★ महाराज अग्रसेन ने अपने नगर अग्रोहा में बसने वाले नए शख्श के लिए एक निष्क और एक ईंट हर परिवार से देने का नियम बनाया था। ताकि अग्रोहा में आने वाले हर शख्श के पास व्यापार के लिए पर्याप्त पूंजी हो और वो अपना घर बना सके।

★ जगतसेठ भामाशाह महाराणा प्रताप के सलाहकार, मित्र व प्रधानमंत्री थे। इन्होंने हिन्दवी स्वराज के महाराणा प्रताप के सपने के लिए अपना सर्वस्व दान कर दिया था । जिसके बाद महाराणा ने एक के बाद एक किले फतेह किये ।

★ एक घटना है जब गुरुगोविंद सिंहः के बच्चो की मुसलमानो ने निर्मम हत्या कर दी, मुसलमान यह दवाब डाल चुके थे, के उनका दाह संस्कार भी नही होने देंगे !! सभी सिख सरदार भी बस दूर खड़े तमाशा देख रहे थे !!

तब एक हिन्दू बनिया टोडरमल जी आगे आये, उन्होंने जमीन पर सोने के सिक्के बिछाकर मुसलमानो से जमीन खरीदी , जिन पर गुरु गोविंद सिंह के बच्चो का दाह संस्कार हो सके !!

आज उनकी कीमत लगभग 150 से 180 करोड़ रुपये तक बेठती है !!

★ बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के निर्माण के समय महामना मदन मोहन मालवीय सेठ दामोदर दास राठी जी से मिले थे। उस समय सेठ जी ने BHU के निर्माण के लिए महामना को 11000 कलदार चांदी के सिक्कों की थैली भेंट की जिसकी कीमत आज 1 हज़ार करोड़ रुपये बैठती है।

★ आजादी के दीवानों में वैश्य समाज के सेठ जमनालाल बजाज का नाम अग्रणी रूप में लिया जाना चाहिए !!

यह रहते महात्मागांधी के साथ थे, लेकिन मदद गरमदल वालो की करते थे ! जिससे हथियार आदि खरीदने में कोई परेशानी नही हो !!

इनसे किसी ने एक बार पूछा था, की आप इतना दान कैसे कर पाते है ?

तो सेठजी का जवाब था ---मैं अपना धन अपने बच्चो को देकर जाऊं, इससे अच्छा है इसे में समाज और राष्ट्र के लिए खर्च कर देवऋण चुकाऊं ।

आज भी अगर आप गांवो में जाये, तो ना जाने कितनी असंख्य धर्मशाला, गौशाला, शिक्षण संस्थान बनियो ने समाज को दान करी है !

जय कुलदेवी महालक्ष्मी जय महाराज अग्रसेन जय महेश

साभार: प्रखर अग्रवाल इ की फेसबु वाल से साभार 



Wednesday, 19 June 2019

"असम के रूपकुंवर जिन्हें मारवाड़ी समाज से ज्यादा असम का समाज अपना मानता है"

"असम के रूपकुंवर जिन्हें मारवाड़ी समाज से ज्यादा असम का समाज अपना मानता है"



रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद अग्रवाल एक बहुआयामी और विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। उनकी महानता, लोकप्रियता और व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए राज्य की एक लोकप्रिय पत्रिका ने एक हजार साल के दस 'सर्वश्रेष्ठ असमिया' में उन्हें भी स्थान दिया है। ज्योतिप्रसाद का शुभ आगमन उस सन्धिक्षण में हुआ जब असमिया संस्कृ्ति तथा सभ्यता अपने मूल रूप से विछिन्न होती जा रही 

थी। प्रगतिशील विश्व की साहित्यिक और सांस्कृ्तिक धारा से असम का प्रत्यक्ष संपर्क नहीं रह गया था। यहां का बुद्धिजीवी वर्ग अपने को उपेक्षित समक्षकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो रहा था। उन दिनों भारतीय साहित्य, संस्कृ्ति, कला और विज्ञान आदि क्षेत्रों में एक अभिनव परिवर्तन आने लगा था, परन्तु असम ऎसे परिवर्तन से लाभ उठाने में अक्षम हो रहा था। इसी काल में ज्योति प्रसाद ने अपनी प्रतिभा से, असम की जनता को नई दृष्टि देकर विश्व के मानचित्र पर असम के संस्कृ्ति को उजागर कर एक ऎसा कार्य कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी उन दिनों कोई नहीं कर सकता था।

जिन महानुभावों के अथक प्रयासों से असम ने आधुनिक शिल्प-कला, साहित्य आदि के क्षेत्र में प्रगति की है, उनमें सबसे पहले ज्योतिप्रसाद का ही नाम गिनाया जायेगा। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मारवाड़ी समाज से कहीं ज्यादा असमिया समाज उन्हें अपना मानता है। "रूपकुंवर" के सम्बोधन से ऎसा मह्सूस होता है कि यह किसी नाम की संज्ञा हो, यह शब्द असमिया समाज की तरफ से दिया गया सबसे बड़ा सम्मान का सूचक है जो असम के अन्य किसी भी साहित्यकार को न तो मिला है और न ही अब मिलेगा।

अठारहवीं शताब्दी में राजस्थान के जयपुर रियासत के अन्तर्गत "केड़" नामक छोटा सा गांव (वर्तमान में झूंझूंणू जिला) जहां से आकर इनके पूर्वज - केशराम, कपूरचंद, चानमल, घासीराम 'केडिया' किसी कारणवस राजस्थान के ही दूसरे गांव 'गट्टा' आकर बस गये, फिर वहां से 'टांई' में अपनी बुआ के पास बस गये और वाणिज्य-व्यापार करने लगे। सन् 1820-21 के आसपास यह परिवार चूरू आया। परिवार में कुल 4 प्राणी - 10 वर्ष का बालक नवरंगराम, माता व दो छोटे भाई, पिता का साया सर से उठ चुका था। बालक नवरंगराम की उम्र जब 15-16 साल की थी तब उन्हें परदेश जाकर कुछ कमाने की सूक्षी सन् 1827-28 में ये कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, बंगाल होते हुये असम में विश्वनाथ चारिआली नामक स्थान पर बस गये और रतनगढ़ के एक फर्म 'नवरंगराम रामदयाल पोद्दार' के यहां बतौर मुनिम नौकरी की। सन् 1932-33 के आसपास नौकरी छोड़कर " गमीरी " नामक स्थान पर आ अपना निजी व्यवसाय आरंभ कर दिये और यहीं अपना घर-बार बसा कर स्थानिय असमिया परिवार में कुलुक राजखोवा की बहन सादरी से विवाह कर लिया। सादरी की अकाल मृ्त्यु हो जाने के पश्चात उन्होंने पुनः दूसरा विवाह कलंगपुर के चारखोलिया गांव के लक्ष्मीकांत सैकिया की बहन सोनपाही से किया। सादरी से दो पुत्र - हरिविलास (बीपीराम) एवं थानुराम तथा सोनपाही से काशीराम प्राप्त हुये। हरिविलास धार्मिक प्रवृ्ति के व्यक्ति थे। इन्होंने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी थी जो असमिया साहित्य में एक मूल्यवान दस्तावेज के रूप में मौजूद है।

ज्योतिप्रसाद का जन्म 17 जून 1903 को डिब्रुगढ़ जिले में स्थित तामुलबारी चायबागान में हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी ज्योतिप्रसाद अगरवाल न सिर्फ एक नाटककार, कथाकार, गीतकार, पत्र संपादक, संगीतकार तथा गायक सभी कुछ थे। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही 'शोणित कुंवरी' नाटक की रचना कर आपने असमिया साहित्य को समृ्द्ध कर दिया। 1935 में असमिया साहित्यकार लक्ष्मीकांत बेजबरूआ के ऎतिहासिक नाटक ' ज्योमति कुंवारी' को आधार मानकर प्रथम असमिया फिल्म बनाई। वे इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, पटकथाकार, सेट डिजाइनर, संगीत तथा नृ्त्य निर्देशक सभी कुछ थे। ज्योति प्रसाद ने दो सहयोगियों बोडो कला गुरु विष्णु प्रसाद सभा (1909-69) और फणि शर्मा (1909-69) के साथ असमिया जन-संस्कृ्ति को नई चेतना दी। यह असमिया जातिय इतिहास का स्वर्ण युग है। ज्योतिप्रसाद की संपूर्ण रचनाएं असम की सरकारी प्रकाशन संस्था ने चार खंडों में प्रकाशित की है। उनमें 10 नाटक और लगभग अतनी ही कहानियां, एक उपन्यास,20 से ऊपर निबंध, तथा 359 गीतों का संकल्न है। जिनमें प्रायः सभी असमिया भाषा में लिखे गये हैं तीन-चार गीत हिन्दी और कुछ अंग्रेजी मे नाटक भी लिखे गये हैं। असम सरकार प्रत्येक वर्ष 17 जनवरी को ज्योतिप्रसाद की पुण्यतिथि को शिल्पी दिवश के रूप में मनाती है। इस दिन पूरे असम प्रदेश में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। सरकारी प्रायोजनों के अतिरिक्त शिक्षण संस्थाओं में बड़े उत्साह से कार्यक्रम पेश किये जाते हैं। जगह- जगह प्रभात फेरियां निकाली जाती है, साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित की जाती है। आजादी की लड़ाई में ज्योतिप्रसाद के योगदानों की चर्चा नहीं की जाय तो यह लेख अधुरा रह जायेगा इसके लिये सिर्फ इतना ही लिखना काफी होगा कि आजादी की लड़ाई में जमुनालाल बजाज के पहले इनके योगदानों को लिखा जाना चाहिये था। अपने जीवन के अंतिम दिनों तक आपने नाटक, गीत, कविता, जीवनी, शिशु कविता, चित्रनाट्य, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि के माध्यम से असमिया भाषा- साहित्य और संस्कृ्ति में अतुलनीय योगदान देकर खुद तो अमर हो गये साथ ही मारवाड़ी समाज को भी अमर कर गये।

असम के एक कवि #शंकरलाल_पारीक ने अपने शब्दों में इस प्रकार पिरोया है रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद अग्रवाला को :



असम मातृ के आंगन में, जन्म हुआ ध्रुव-तारे का;

नाम था उसका 'ज्योतिप्रसाद'
यथा नाम तथा गुण का, था उसमें सच्चा प्रकाश
जान गया जग उसको सारा
गीत रचे और गाये उसने, नाटक के पात्र बनाये उसने; जन-जन तक पहुंचाये उसने,
स्वतंत्रता की लड़ी लड़ाई, घर-घर अलख जगाई
असम की माटी की गंध में, फूलों की सुगंध में
लोहित की बहती धारा की कल-कल में, रचा-बसा है नाम 'ज्योति' का
असम संस्कृ्ति को महकाने वाला, आजादी का बिगुल बजाने वाला।
#अग्रवाल_गौरव
साभार: प्रखर अग्रवाल की फसेबूक वाल से


THE GREAT VAISHYA COMMUNITY - पहली बार प्रमुख पद वैश्य समाज के पास

इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है. भारत के संविधान में तीन प्रमुख पद हमारे वैश्य समाज के पास हैं. बहुत बहुत बधाई.

१. प्रधानमंत्री: श्री नरेन्द्र मोदी जी, मोध मोदी वनिक वैश्य

२. गृह मंत्री : श्री अमित शाह जी, खडायत वनिक वैश्य



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"हमारा वैश्य समाज"

३. लोकसभा अध्यक्ष : श्री औम बिरला जी, माहेश्वरी वैश्य

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४. रेल मंत्री : पियूष गोयल जी, अग्रवाल वैश्य
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५. स्वास्थय मंत्री : श्री हर्षवर्धन जी. अग्रवाल वैश्य
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६. श्री रामेश्वर तेली जी, तैलिक वैश्य
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Tuesday, 18 June 2019

OM BIRLA - ओम बिरला, नये लोकसभा अध्यक्ष.

अनुभव पर मोदी ने युवा जोश को दी तरजीह, ओम बिड़ला होंगे लोकसभा के नए स्पीकर



राजस्थान के बूंदी से सांसद ओम बिड़ला लोकसभा के नए अध्यक्ष होंगे। सारे पूर्वानुमानों और अटकलों पर विराम लगाते हुए पीएम मोदी ने लोकसभा के नए स्पीकर के मामले में अनुभव पर ऊर्जावान युवा चेहरे को तरजीह दी है। नाम तय होने के बाद बिड़ला ने मंगलवार को स्पीकर पद के लिए नामांकन भर दिया। उन्हें राजग में शामिल दलों के अलावा वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी (कुल 10 दलों) का समर्थन हासिल हुआ। संभावना है कि बिड़ला बुधवार को निर्विरोध स्पीकर चुन लिये जाएंगे।

56 वर्षीय बिड़ला का नाम बतौर स्पीकर सोमवार देर रात तक चली भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में तय किया गया। बूंदी से दूसरी बार सांसद बिड़ला इससे पहले तीन बार राजस्थान विधानसभा केसदस्य रह चुके हैं। विधायक रहते हुए उन्होंने संसदीय सचिव की जिम्मेदारी संभाली थी। जबकि सांसद रहते बीती लोकसभा में कई संसदीय समितियों में शामिल रहे थे। 

बिड़ला वैश्य बिरादरी के है, और राज्य में वसुंधरा विरोधी खेमे के हैं। जीएसटी लागू होने के बाद यह बिरादरी भाजपा से नाराज थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में यह बिरादरी पार्टी के खिलाफ खड़ी नहीं हुई। इसके अलावा बिड़ला वसुंधरा विरोधी खेमे से हैं। इससे पहले उनके विरोधी खेमे के अर्जुन मेघवाल और गजेंद्र सिंह शेखावत को मंत्री बनाया जा चुका है। जबकि कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की तैयारी की जा रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा राजस्थान में नेतृत्व की नई पीढ़ी तैयार करने में जुट गई है।

वैश्य समाज  पर सम्पूर्ण जानकारी के लिए पढ़े. 
" हमारा वैश्य समाज " 

भाजपा सूत्रों का कहना है कि स्पीकर उम्मीदवार बनाने में बिड़ला की निर्विवाद छवि और काम पर ध्यान केंद्रित रह कर विवाद से दूर रहने की रणनीति काम आई। वैसे भी पीएम ने बीते हफ्ते आयोजित संसदीय दल की बैठक में साफ कर दिया था कि जिम्मेदारी देने केमामले में वरिष्ठता की जगह गुणवत्ता, निपुणता और तत्परता को मापदंड बनाया जाएगा।


साभार: अमरउजाला