Tuesday, 10 September 2019

Vaniya Nair - केरल की एकप्रमुख वैश्य जाति

Vaniya Nair

Vaniya Nairs/Vaniya Chettiars are old Nair sub-caste among Nairs in northern Malabar.


They engaged in production and selling of oil. Vaniyar of north Malabar are believed to be the immigrants from sourashtra(In which they are part of Baniya Caste)& came to kolathunadu(Which is present North Malabar) for trade purposes and settled here. They widely belonged to Vaishya Varna among four varnas but since Vaishya varna didn't existed in Malabar they were granted to use 'Nair' title by kolathiri rajas of kolathu nadu,They also use chettiar as their surname. Vaniyars are endogamous in nature and usually they don't inter-marry with other Nairs sub-castes of Kerala.

The chief goddess of vaniya community is Muchilot Bhagavathi and there are 118 muchilot temples in Malabar spread across Kasaragod, Kannur, and Kozhikode districts

Muchilot bhagavathi got that name from Muchilottu PadaNair who was a vaniya nair and chieftain of local king's Army

Vaniyars have 9 illams or clans namely Muchilot,thachilam,Pallikkara,Chorulla,Chanthamkulangara,Kunjoth,Nambram,Naroor,&Valli

Modh ghanchi community of Gujarat are north Indian counterpart of vaniya caste of Malabar

Vaniyars of Malabar have sole organisation for the upliftment of vaniya community in their socio, economic, educational, cultural, employment fields and to strengthen,protect the unity and cultural heritage of the community, It is named vaniya samudaya samithi. The comnunity also runs a school 'Thunchathacharya Vidyalaya' in chovva,Kannur

Famous businessman C. P. Krishnan Nair
Former calicut district collector-Prasanth Nair IAS 
Founder of gemini circus-M.V Shankaran 
T.Raghavan Nair IPS 

Wednesday, 26 June 2019

SAMANT GOEL - सामंत गोयल बने रॉ चीफ

सामंत गोयल बने रॉ चीफ, बालाकोट एयर स्ट्राइक में निभाई थी अहम भूमिका



बालाकोट एयर स्ट्राइक (balakot air strike) में अहम भूमिका निभाने वाले आईपीएस अधिकारी सामंत गोयल को देश की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ (RAW) का प्रमुख बनाया गया है। वहीं, आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार को इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी का निदेशक बनाया गया है।

दोनों ही 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। केंद्र सरकार ने दोनों अधिकारियों को अहम जिम्मेदारी सौंपी है। सामंत गोयल मौजूदा रॉ चीफ अनिल कुमार धस्माना की जगह लेंगे, जो ढाई साल तक रॉ का शानदार नेतृत्व करने के बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। गोयल पंजाब कैडर के 1984 बैच के अफसर हैं। 

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"हमारा वैश्य समाज"

1990 के दौर में जब पंजाब उग्रवाद की चपेट में था, तब सामंत गोयल ने सराहनीय कार्य करते हुए उग्रवाद के खिलाफ कई अभियान चलाए थे। बता दें कि सामंत गोयल ने ही 26 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में हुए एयर स्ट्राइक की प्लानिंग की थी। पुलवामा में आतंकियों ने सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया था, जिसमें 40 से ज्यादा जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की थी और आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूत किया था। 



Monday, 24 June 2019

DINESH AGRAWAL - INDIAMART - दिल्ली का ऑनलाइन सदर बाजार

इंडियामार्ट / 40 हजार रुपए से बना डाला दिल्ली का ऑनलाइन सदर बाजार, अब है 430 करोड़ का कारोबार



नई दिल्ली. दिल्ली का सदर बाजार, उत्तर भारत का सबसे मशहूर थोक बाजार है। जहां सुई से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान तक थोक दाम पर मिलते हैं। जहां सैकड़ों नहीं, हजारों कारोबारी रोजाना व्यापार करने आते हैं। इस प्रकार के दूसरे बाजार की परिकल्पना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। लेकिन एक बीटेक ग्रेजुएट ने मात्र एक कंप्यूटर और 40,000 रुपए की पूंजी से ऑनलाइन सदर बाजार बना डाला। यहां 5 करोड़ से अधिक प्रोडक्ट का कारोबार होता है।


लाखों हैं रजिस्टर्ड विक्रेता


इस ऑनलाइन थोक बाजार में 6 करोड़ खरीदार तो 47 लाख रजिस्टर्ड विक्रेता हैं। इनमें से 10 लाख से अधिकत तो मैन्यूफैक्चरर्स हैं। इस बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) ऑनलाइन बाजार का नाम है इंडिया मार्ट। जहां वित्त वर्ष 2017-18 में 430 करोड़ रुपए का कारोबार किया गया। हम बात कर रहे हैं इसके संस्थापक एवं सीईओ दिनेश अग्रवाल की। कंपनी ने अपना आईपीओ भी लॉन्च कर दिया है, जो 26 जून तक खुला रहेगा।

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" हमारा वैश्य समाज"


हर सेकंड 20 क्रेता-विक्रेताओं का मिलन


अग्रवाल ने मनी भास्कर को बताया कि इंडियामार्ट के प्लेटफार्म पर हर सेकेंड 20 क्रेता-विक्रेताओं का मिलन (मैच) होता है। यानी एक दिन में यह आंकड़ा 20 लाख और हर महीने 4.5 करोड़ तक पहुंच जाता है। अग्रवाल ने बताया कि कंपनी में 3500 लोगों को डायरेक्ट रोजगार मिला हुआ है। राजनैतिक एवं कारोबारी घराने से ताल्लुक रखने वाले अग्रवाल ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री ली है। अग्रवाल ने बताया कि उनके दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे और 1957 में बहराइच इलाके से एमएलए भी रहे। कानपुर से बीटेक की डिग्री लेने के बाद 1992-95 तक उन्होंने विदेश में नौकरी की। 1995 में भारत में इंटरनेट लॉन्च हुआ, तब वह अमेरिका में एचसीएल में नौकरी करते थे। लेकिन तभी उन्होंने सोच लिया था कि अब कारोबार करना है। अग्रवाल ने बताया कि 1996 में उन्होंने एक कंप्यूटर और 40,000 रुपए से इंडियामार्ट की शुरुआत की।


साभार : मनिभास्कर.कॉम 

Sunday, 23 June 2019

हिन्दू धर्म मे वैश्य समाज का योगदान



वैश्य समाज सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार व गौरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहा है । मनुस्मृति में वैश्य समाज के लिए वर्णित कर्तव्य अध्ययन, दान, व्यापार, पशु रक्षा व गौसेवा का पूरी तरह पालन कर रहा है । भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार, गौसेवा, धार्मिक एवं नैतिक साहित्य की अभिवृद्धि आदि पर वैश्य समाज के दान के प्रमुख बिंदु रहे हैं । उनकी सेवाओं का प्रसार मानव मात्र से लेकर पशु-पक्षियों, चर-अचर व सृष्टि के समस्त जीवों के लिए है ।

◆ हिन्दू ग्रंथों की प्राचीन पाण्डुलिपियों को खोज के उनका प्रकाशन

सन् 1923 में सेठ जी जयदयाल गोयन्दका और सेठ घनश्याम दास जालान ने गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना की। इन्होंने प्राचीन हिन्दू ग्रंथों की अधिक से अधिक पुरानी प्रति खोज कर उसका प्रकाशन किया। इन्होंने संस्कृत और विभिन्न भाषायों के विद्वान लोगों को बुला के हर ग्रंथ का अनुवाद विभिन्न भाषायों में करके हिन्दू ग्रंथों का प्रचार प्रसार किया। 

1871 में सेठ गंगाविष्णु दास बजाज और खेमराज कृष्णदास बजाज ने वेंकेटेश्वर प्रेस की स्थापना की थी । जिसने भी हिन्दू ग्रंथों के प्रकाशन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

◆ पूरे भारत वर्ष में भव्य हिन्दू मंदिरों का निर्माण

"यह जाती अपनी उदारता और दानशीलता के कारण ब्राह्मणों की सच्ची हितैषी व हमारे समय में मंदिरों का निर्माण करने वाली मुख्य जाती थी ।" ~ W. Crook

800 वर्ष के दिल्ली पर मुग़लों और अंग्रेजों के शाशन के पश्च्यात 1938 में दिल्ली के पहले हिन्दू मंदिर (लक्ष्मी नारायण मंदिर) का निर्माण बिरला परिवार ने किया था। हिन्दू एकता के लिए खुद घनश्याम दास बिरला जी दलितों को साथ लेके मंदिर में गए। बिरला घराने ने पूरे भारत वर्ष में 20 भव्य हिन्दू मंदिरों का निर्माण किया था जिसमें ग्वालियर का सूर्यमंदिर, बनारस हिन्दू विश्वविधयालय परिसर में बना काशी विश्वनाथ मंदिर, हैदराबद का राधा कृष्ण मंदिर आदि हैं।

गुप्त काल को भारत का स्वर्णयुग कहा गया है । उसने भारत वर्ष में कई भव्य और विशाल मंदिरों का निर्माण किया था।जिनमें देवगढ़ का दशावतार मंदिर, कानपुर का भितराओं मंदिर आदि हैं।

◆ राम जन्मभूमि आंदोलन में वैश्य समाज की भूमिका

अयोध्या जन्मभूमि आंदोलन विहिप अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल जी के नेतृत्व में शुरू हुआ। उन्होंने भारतवर्ष में यात्रा करके चारों शंकराचार्यों, अनेकों साधु-संतों का आशीर्वाद लेकर और समस्त सनातनी समाज को एकजुट किया। जन्मभूमि के लिए आंदोलन चलाया और कई बड़ी रैलियां की पूरे देश मे। ये आंदोलन के दौरान पुलिस की लाठीचार्ज की वजह से घायल भी हुए ।

रामजन्मभूमि आंदोलन में अनेको वैश्यों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और अपनी जान की आहूति भी दी। कलकत्ता से दो मारवाड़ी युवक भाई राम कोठारी और शरद कोठारी पैदल चल के अयोध्या पहुंचे और रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए बलिदान दिया।

◆ जजिया कर से हिंदुओं की रक्षा 

मुग़लों के काल में हिंदुओं पे जजिया कर लगाया गया था। सिर्फ हिन्दू होने की वजह से उनसे भारी कर लिया जाता था जो की आम आदमी चुकाने में समर्थ नहीं था। इतिहास में प्रसंग है की तब ग्राम के नगरसेठ पूरे ग्राम का जजिया कर भर देते थे जिससे उन्हें मुग़लों के अत्याचार से बचाया जा सके।

राजा रतन चंद सय्यद बंधुओं के दीवान और मित्र थे। ये अग्रवाल परिवार से थे। इनकी गिनती सय्यद बंधुओं के साथ मुग़ल साम्राज्य के किंगमेकर में होती थी। मुग़ल काल में हिंदुओं को शाशन में उचित पद नहीं मिलते थे तब इन्होंने हिंदुओं की शिक्षा व्यवस्था में ध्यान दिया और उन्हें शाशन में ऊंचे पद दिलवाए। इन्होंने अपने समय में हिंदुओं पर से जजिया कर हटवा दिया था ।


वैश्य समाज सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार व गौरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहा है । मनुस्मृति में वैश्य समाज के लिए वर्णित कर्तव्य अध्ययन, दान, व्यापार, पशु रक्षा व गौसेवा का पूरी तरह पालन कर रहा है । भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार, गौसेवा, धार्मिक एवं नैतिक साहित्य की अभिवृद्धि आदि पर वैश्य समाज के दान के प्रमुख बिंदु रहे हैं । उनकी सेवाओं का प्रसार मानव मात्र से लेकर पशु-पक्षियों, चर-अचर व सृष्टि के समस्त जीवों के लिए है ।


◆ गौवंश की रक्षा में वैश्य समाज की भूमिका


गौवंश की रक्षा में अग्रवालों के नवरत्न लाला हरदेव सहाय का नाम अग्रणी रूप से लिया जाना चाहिये। इन्होंने गौवंश की रक्षा के लिए 1954 में गौधन नाम से पत्रिका की शुरुवात की। लाला जी को तथ्यों के साथ पता लगा कि पंजाब व राजस्थान से भारी संख्या में गाय बैलों की तस्करी कर उन्हें पाकिस्तान के कसाईखानों में भेजा जाता है। इस जानकारी ने उन्हें उद्वेलित कर दिया। लाला जी ने 31 जुलाई 1956 को प्रतिनिधि मंडल के साथ राष्ट्रपति भवन जाकर राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद से भेंट कर उन्हें गायों की तस्करी कर पाकिस्तान ले जाए जाने तथा देशभर में प्रतिदिन लाखों गायों की हत्या किए जाने की जानकारी दी। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से खादी कमीशन की तरह गोरक्षा के लिए अलग से संवैधानिक बोर्ड का गठन कर देश भर में गोहत्या पर रोक लगाने का मार्ग प्रशस्त किए जाने का सुझाव दिया।

सेठ रामकृष्ण डालमिया अनन्य गौभक्त थे। सन् 1978 में गौहत्या के विरोध के लिए आमरण अनशन किया और अनशन के दौरान ही अपनी जीवन लीला समाप्त की।

◆ सात्विक भोजन के प्रचार-प्रसार में वैश्य समाज की भूमिका

"वैश्य युगांतर से ही मांसभक्षण के विरोधी रहे और आज भी अधिकांश वैश्य परिवारों में मांस भक्षण नहीं पाया जाता।" ~ जातिभास्कर, पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र

अग्रवालों के पूर्वज महाराज अग्रसेन ने अपने राज्य में पशुबलि निषेध की थी। उन्होंने अपने राज्य में शाकाहारी भोजन एवं नियम से रहन-सहन का कानून बनाया। अग्रवाल समाज उन्ही के पदचिह्न पर चलके सात्विक भोजन का प्रचार-प्रसार करता है।

हिन्दू जाग्रति का शंखनाद करने वाले तथा अनेक पत्र पत्रिकाओं का संपादन करने वाले श्री अयोध्या प्रसाद गोयल जी के पिता श्री रामशरणदास जी ने भी जेल में रहकर ६ माह तक केवल नमक को पानी में घोलकर रोटी इसलिये खाई, क्योंकि जेल में मिलने वाली सब्जी में प्याज रहता है था, उनके मौन सत्याग्रह की आखिर में विजय हुई तथा बिना प्याज की सब्जी इनके लिये अलग से बनने की जेल अधिकारियों ने मंजूरी दी।

◆ वैश्य समाज की भामाशाही परंपरा

★ महाराज अग्रसेन ने अपने नगर अग्रोहा में बसने वाले नए शख्श के लिए एक निष्क और एक ईंट हर परिवार से देने का नियम बनाया था। ताकि अग्रोहा में आने वाले हर शख्श के पास व्यापार के लिए पर्याप्त पूंजी हो और वो अपना घर बना सके।

★ जगतसेठ भामाशाह महाराणा प्रताप के सलाहकार, मित्र व प्रधानमंत्री थे। इन्होंने हिन्दवी स्वराज के महाराणा प्रताप के सपने के लिए अपना सर्वस्व दान कर दिया था । जिसके बाद महाराणा ने एक के बाद एक किले फतेह किये ।

★ एक घटना है जब गुरुगोविंद सिंहः के बच्चो की मुसलमानो ने निर्मम हत्या कर दी, मुसलमान यह दवाब डाल चुके थे, के उनका दाह संस्कार भी नही होने देंगे !! सभी सिख सरदार भी बस दूर खड़े तमाशा देख रहे थे !!

तब एक हिन्दू बनिया टोडरमल जी आगे आये, उन्होंने जमीन पर सोने के सिक्के बिछाकर मुसलमानो से जमीन खरीदी , जिन पर गुरु गोविंद सिंह के बच्चो का दाह संस्कार हो सके !!

आज उनकी कीमत लगभग 150 से 180 करोड़ रुपये तक बेठती है !!

★ बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के निर्माण के समय महामना मदन मोहन मालवीय सेठ दामोदर दास राठी जी से मिले थे। उस समय सेठ जी ने BHU के निर्माण के लिए महामना को 11000 कलदार चांदी के सिक्कों की थैली भेंट की जिसकी कीमत आज 1 हज़ार करोड़ रुपये बैठती है।

★ आजादी के दीवानों में वैश्य समाज के सेठ जमनालाल बजाज का नाम अग्रणी रूप में लिया जाना चाहिए !!

यह रहते महात्मागांधी के साथ थे, लेकिन मदद गरमदल वालो की करते थे ! जिससे हथियार आदि खरीदने में कोई परेशानी नही हो !!

इनसे किसी ने एक बार पूछा था, की आप इतना दान कैसे कर पाते है ?

तो सेठजी का जवाब था ---मैं अपना धन अपने बच्चो को देकर जाऊं, इससे अच्छा है इसे में समाज और राष्ट्र के लिए खर्च कर देवऋण चुकाऊं ।

आज भी अगर आप गांवो में जाये, तो ना जाने कितनी असंख्य धर्मशाला, गौशाला, शिक्षण संस्थान बनियो ने समाज को दान करी है !

जय कुलदेवी महालक्ष्मी जय महाराज अग्रसेन जय महेश

साभार: प्रखर अग्रवाल इ की फेसबु वाल से साभार 



Wednesday, 19 June 2019

"असम के रूपकुंवर जिन्हें मारवाड़ी समाज से ज्यादा असम का समाज अपना मानता है"

"असम के रूपकुंवर जिन्हें मारवाड़ी समाज से ज्यादा असम का समाज अपना मानता है"



रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद अग्रवाल एक बहुआयामी और विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। उनकी महानता, लोकप्रियता और व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए राज्य की एक लोकप्रिय पत्रिका ने एक हजार साल के दस 'सर्वश्रेष्ठ असमिया' में उन्हें भी स्थान दिया है। ज्योतिप्रसाद का शुभ आगमन उस सन्धिक्षण में हुआ जब असमिया संस्कृ्ति तथा सभ्यता अपने मूल रूप से विछिन्न होती जा रही 

थी। प्रगतिशील विश्व की साहित्यिक और सांस्कृ्तिक धारा से असम का प्रत्यक्ष संपर्क नहीं रह गया था। यहां का बुद्धिजीवी वर्ग अपने को उपेक्षित समक्षकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो रहा था। उन दिनों भारतीय साहित्य, संस्कृ्ति, कला और विज्ञान आदि क्षेत्रों में एक अभिनव परिवर्तन आने लगा था, परन्तु असम ऎसे परिवर्तन से लाभ उठाने में अक्षम हो रहा था। इसी काल में ज्योति प्रसाद ने अपनी प्रतिभा से, असम की जनता को नई दृष्टि देकर विश्व के मानचित्र पर असम के संस्कृ्ति को उजागर कर एक ऎसा कार्य कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी उन दिनों कोई नहीं कर सकता था।

जिन महानुभावों के अथक प्रयासों से असम ने आधुनिक शिल्प-कला, साहित्य आदि के क्षेत्र में प्रगति की है, उनमें सबसे पहले ज्योतिप्रसाद का ही नाम गिनाया जायेगा। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मारवाड़ी समाज से कहीं ज्यादा असमिया समाज उन्हें अपना मानता है। "रूपकुंवर" के सम्बोधन से ऎसा मह्सूस होता है कि यह किसी नाम की संज्ञा हो, यह शब्द असमिया समाज की तरफ से दिया गया सबसे बड़ा सम्मान का सूचक है जो असम के अन्य किसी भी साहित्यकार को न तो मिला है और न ही अब मिलेगा।

अठारहवीं शताब्दी में राजस्थान के जयपुर रियासत के अन्तर्गत "केड़" नामक छोटा सा गांव (वर्तमान में झूंझूंणू जिला) जहां से आकर इनके पूर्वज - केशराम, कपूरचंद, चानमल, घासीराम 'केडिया' किसी कारणवस राजस्थान के ही दूसरे गांव 'गट्टा' आकर बस गये, फिर वहां से 'टांई' में अपनी बुआ के पास बस गये और वाणिज्य-व्यापार करने लगे। सन् 1820-21 के आसपास यह परिवार चूरू आया। परिवार में कुल 4 प्राणी - 10 वर्ष का बालक नवरंगराम, माता व दो छोटे भाई, पिता का साया सर से उठ चुका था। बालक नवरंगराम की उम्र जब 15-16 साल की थी तब उन्हें परदेश जाकर कुछ कमाने की सूक्षी सन् 1827-28 में ये कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, बंगाल होते हुये असम में विश्वनाथ चारिआली नामक स्थान पर बस गये और रतनगढ़ के एक फर्म 'नवरंगराम रामदयाल पोद्दार' के यहां बतौर मुनिम नौकरी की। सन् 1932-33 के आसपास नौकरी छोड़कर " गमीरी " नामक स्थान पर आ अपना निजी व्यवसाय आरंभ कर दिये और यहीं अपना घर-बार बसा कर स्थानिय असमिया परिवार में कुलुक राजखोवा की बहन सादरी से विवाह कर लिया। सादरी की अकाल मृ्त्यु हो जाने के पश्चात उन्होंने पुनः दूसरा विवाह कलंगपुर के चारखोलिया गांव के लक्ष्मीकांत सैकिया की बहन सोनपाही से किया। सादरी से दो पुत्र - हरिविलास (बीपीराम) एवं थानुराम तथा सोनपाही से काशीराम प्राप्त हुये। हरिविलास धार्मिक प्रवृ्ति के व्यक्ति थे। इन्होंने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी थी जो असमिया साहित्य में एक मूल्यवान दस्तावेज के रूप में मौजूद है।

ज्योतिप्रसाद का जन्म 17 जून 1903 को डिब्रुगढ़ जिले में स्थित तामुलबारी चायबागान में हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी ज्योतिप्रसाद अगरवाल न सिर्फ एक नाटककार, कथाकार, गीतकार, पत्र संपादक, संगीतकार तथा गायक सभी कुछ थे। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही 'शोणित कुंवरी' नाटक की रचना कर आपने असमिया साहित्य को समृ्द्ध कर दिया। 1935 में असमिया साहित्यकार लक्ष्मीकांत बेजबरूआ के ऎतिहासिक नाटक ' ज्योमति कुंवारी' को आधार मानकर प्रथम असमिया फिल्म बनाई। वे इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, पटकथाकार, सेट डिजाइनर, संगीत तथा नृ्त्य निर्देशक सभी कुछ थे। ज्योति प्रसाद ने दो सहयोगियों बोडो कला गुरु विष्णु प्रसाद सभा (1909-69) और फणि शर्मा (1909-69) के साथ असमिया जन-संस्कृ्ति को नई चेतना दी। यह असमिया जातिय इतिहास का स्वर्ण युग है। ज्योतिप्रसाद की संपूर्ण रचनाएं असम की सरकारी प्रकाशन संस्था ने चार खंडों में प्रकाशित की है। उनमें 10 नाटक और लगभग अतनी ही कहानियां, एक उपन्यास,20 से ऊपर निबंध, तथा 359 गीतों का संकल्न है। जिनमें प्रायः सभी असमिया भाषा में लिखे गये हैं तीन-चार गीत हिन्दी और कुछ अंग्रेजी मे नाटक भी लिखे गये हैं। असम सरकार प्रत्येक वर्ष 17 जनवरी को ज्योतिप्रसाद की पुण्यतिथि को शिल्पी दिवश के रूप में मनाती है। इस दिन पूरे असम प्रदेश में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। सरकारी प्रायोजनों के अतिरिक्त शिक्षण संस्थाओं में बड़े उत्साह से कार्यक्रम पेश किये जाते हैं। जगह- जगह प्रभात फेरियां निकाली जाती है, साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित की जाती है। आजादी की लड़ाई में ज्योतिप्रसाद के योगदानों की चर्चा नहीं की जाय तो यह लेख अधुरा रह जायेगा इसके लिये सिर्फ इतना ही लिखना काफी होगा कि आजादी की लड़ाई में जमुनालाल बजाज के पहले इनके योगदानों को लिखा जाना चाहिये था। अपने जीवन के अंतिम दिनों तक आपने नाटक, गीत, कविता, जीवनी, शिशु कविता, चित्रनाट्य, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि के माध्यम से असमिया भाषा- साहित्य और संस्कृ्ति में अतुलनीय योगदान देकर खुद तो अमर हो गये साथ ही मारवाड़ी समाज को भी अमर कर गये।

असम के एक कवि #शंकरलाल_पारीक ने अपने शब्दों में इस प्रकार पिरोया है रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद अग्रवाला को :



असम मातृ के आंगन में, जन्म हुआ ध्रुव-तारे का;

नाम था उसका 'ज्योतिप्रसाद'
यथा नाम तथा गुण का, था उसमें सच्चा प्रकाश
जान गया जग उसको सारा
गीत रचे और गाये उसने, नाटक के पात्र बनाये उसने; जन-जन तक पहुंचाये उसने,
स्वतंत्रता की लड़ी लड़ाई, घर-घर अलख जगाई
असम की माटी की गंध में, फूलों की सुगंध में
लोहित की बहती धारा की कल-कल में, रचा-बसा है नाम 'ज्योति' का
असम संस्कृ्ति को महकाने वाला, आजादी का बिगुल बजाने वाला।
#अग्रवाल_गौरव
साभार: प्रखर अग्रवाल की फसेबूक वाल से


THE GREAT VAISHYA COMMUNITY - पहली बार प्रमुख पद वैश्य समाज के पास

इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है. भारत के संविधान में तीन प्रमुख पद हमारे वैश्य समाज के पास हैं. बहुत बहुत बधाई.

१. प्रधानमंत्री: श्री नरेन्द्र मोदी जी, मोध मोदी वनिक वैश्य

२. गृह मंत्री : श्री अमित शाह जी, खडायत वनिक वैश्य



वैश्य समाज की सम्पूर्ण जानकारी के लिए पढ़िए 
"हमारा वैश्य समाज"

३. लोकसभा अध्यक्ष : श्री औम बिरला जी, माहेश्वरी वैश्य

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४. रेल मंत्री : पियूष गोयल जी, अग्रवाल वैश्य
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५. स्वास्थय मंत्री : श्री हर्षवर्धन जी. अग्रवाल वैश्य
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६. श्री रामेश्वर तेली जी, तैलिक वैश्य
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Tuesday, 18 June 2019

OM BIRLA - ओम बिरला, नये लोकसभा अध्यक्ष.

अनुभव पर मोदी ने युवा जोश को दी तरजीह, ओम बिड़ला होंगे लोकसभा के नए स्पीकर



राजस्थान के बूंदी से सांसद ओम बिड़ला लोकसभा के नए अध्यक्ष होंगे। सारे पूर्वानुमानों और अटकलों पर विराम लगाते हुए पीएम मोदी ने लोकसभा के नए स्पीकर के मामले में अनुभव पर ऊर्जावान युवा चेहरे को तरजीह दी है। नाम तय होने के बाद बिड़ला ने मंगलवार को स्पीकर पद के लिए नामांकन भर दिया। उन्हें राजग में शामिल दलों के अलावा वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी (कुल 10 दलों) का समर्थन हासिल हुआ। संभावना है कि बिड़ला बुधवार को निर्विरोध स्पीकर चुन लिये जाएंगे।

56 वर्षीय बिड़ला का नाम बतौर स्पीकर सोमवार देर रात तक चली भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में तय किया गया। बूंदी से दूसरी बार सांसद बिड़ला इससे पहले तीन बार राजस्थान विधानसभा केसदस्य रह चुके हैं। विधायक रहते हुए उन्होंने संसदीय सचिव की जिम्मेदारी संभाली थी। जबकि सांसद रहते बीती लोकसभा में कई संसदीय समितियों में शामिल रहे थे। 

बिड़ला वैश्य बिरादरी के है, और राज्य में वसुंधरा विरोधी खेमे के हैं। जीएसटी लागू होने के बाद यह बिरादरी भाजपा से नाराज थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में यह बिरादरी पार्टी के खिलाफ खड़ी नहीं हुई। इसके अलावा बिड़ला वसुंधरा विरोधी खेमे से हैं। इससे पहले उनके विरोधी खेमे के अर्जुन मेघवाल और गजेंद्र सिंह शेखावत को मंत्री बनाया जा चुका है। जबकि कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की तैयारी की जा रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा राजस्थान में नेतृत्व की नई पीढ़ी तैयार करने में जुट गई है।

वैश्य समाज  पर सम्पूर्ण जानकारी के लिए पढ़े. 
" हमारा वैश्य समाज " 

भाजपा सूत्रों का कहना है कि स्पीकर उम्मीदवार बनाने में बिड़ला की निर्विवाद छवि और काम पर ध्यान केंद्रित रह कर विवाद से दूर रहने की रणनीति काम आई। वैसे भी पीएम ने बीते हफ्ते आयोजित संसदीय दल की बैठक में साफ कर दिया था कि जिम्मेदारी देने केमामले में वरिष्ठता की जगह गुणवत्ता, निपुणता और तत्परता को मापदंड बनाया जाएगा।


साभार: अमरउजाला 

Wednesday, 15 May 2019

भारत के वो चार 'सेठ', जिनकी ना के बराबर हुई थी पढ़ाई लेकिन कमाया अथाह पैसा

भारत के वो चार 'सेठ', जिनकी ना के बराबर हुई थी पढ़ाई लेकिन कमाया अथाह पैसा


जीवन में सफल होने का एकमात्र मानक उच्च शिक्षा नहीं है. यह हम नहीं कह रहे, भारत की ये दिग्गज हस्तियां साबित कर चुकी हैं.

जीवन में सफल होने का एकमात्र मानक उच्च शिक्षा नहीं है. यह हम नहीं कह रहे, भारत की ये दिग्गज हस्तियां साबित कर चुकी हैं.

जीवन में सफलता के कदम चूमने के लिए साक्षर होना, उच्च शिक्षा हासिल करना, बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में भारी-भरकम लेक्चर सुनना अनिवार्य नहीं है. इन बातों को हम नहीं कह रहे इन बातों को साबित किया है भारत के शीर्ष के उद्योगपतियों ने. उन शख्सियतों ने जिनकी पढ़ाई-लिखाई न के बराबर हुई है, लेकिन उनका उद्योग हजारों करोड़ का है.

घनश्याम दास बिड़ला, आजादी के आंदोलन के लिए भी दिए पैसे

इस सूची में सबसे ऊपर नाम घनश्याम दास बिड़ला (जीडी बिड़ला) का है. इन्होंने केएम बिड़ला ग्रुप की स्‍थापना की थी. एक आंकड़े के मुताबिक इस ग्रुप की परिसंपत्तियां करीब 200 अरब रुपये है. जीडी बिड़ला ने आरंभिक पढ़ाई के बाद ही पढ़ाई-लिखाई से तौबा कर लिया था.

जीडी बिड़ला का राजस्‍थान के पिलानी में 1894 में हुआ था. उन्होंने शुरुआती पढ़ाई के बाद कोलकाता जाकर व्यसाय शुरू कर दिया. यही नहीं उस दौर में जब देशभर में आजादी की लड़ाई छिड़ी हुई थी, उस दौर में आजादी के जननायकों के लिए भी उन्होंने पैसे जुटाने का काम किया. आजादी के आंदोलन में कूदे बेहद पढ़े-लिखे लोगों को जब पैसे की जरूरत पड़ी तो वे जीडी बिड़ला के पास पहुंचे.


बाद में आजाद भारत में इसी केवल प्राथमिक शिक्षा हासिल करने वाले शख्स ने कपड़े, सीमेंट, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, एल्यूमीनियम के क्षेत्र में उल्लेखनीय व्यवसाय बिठाया.

रामकृष्ण डालमिया, नेहरू और जिन्ना दोनों के रहे प्र‌िय

रामकृष्ण डालमिया ने 18 साल की उम्र में जब कारोबार की दुनिया में कदम रखा, तो पिता विरासत में उनके लिए कुछ भी छोड़कर नहीं गए थे. इसके बाद अगले कुछ सालों में उन्होंने बड़ा उद्योग खड़ा कर लिया. जबकि उनकी शक्षणिक योग्यता के बारे में पता करें तो प्राइमरी के बाद उनके स्कूल या कॉलेज जाने का कोई सबूत नहीं मिलते. लेकिन इन्होंने डालमिया ग्रुप की स्‍थापना की.

डालमिया राजस्‍थान के चिरावा नाम के गांव में पैदा हुए थे. यहीं से उन्होंने ऊचाई का रास्ता तय किया. इन्होंने चीनी फैक्ट्री, सीमेंट, पेपर, बैंक, इंस्योरेंस कंपनी, बिस्कुट, एविएशन कंपनी और पब्लिकेशन के क्षेत्र में काम किया. जबकि उनकी अपनी पढ़ाई-ल‌िखाई बहुत ही कम हुई थी.




कहा जाता था कि वो जिस कारोबार में हाथ डालते थे, वहां उन्हें सफलता उनके हाथ चूमते थी. डालमिया के पास अकूत संपत्ति थी और ताकत भी था. वह गांधी से लेकर जिन्ना तक के सीधे संपर्क में रहते थे. वह रसिक और महिलाओं को पसंद करने वाले शख्स भी थे.

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एमडीएच वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी, तांगा चलाने से यहां तक का सफर



'महाशय जी' के नाम से प्रसिद्ध धर्मपाल गुलाटी का जन्म साल 1919 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ. शुरुआती दिनों में ही बेहतर पढ़ाई के संस्‍थान और मन ना लगने के चलते इनकी शिक्षा छूट गई थी. यहीं से उनके व्यवसाय की नीव पड़ी. उन्होंने कंपनी की शुरुआत शहर में एक छोटे से दुकान से की. लेकिन 1947 में उनका परिवार दिल्ली आ गया.

ऐसा कहा जाता है कि एमडीएच के मालिक ने दिल्ली पहुंचने के बाद एक तांगा खरीदा जिसमें वह कनॉट प्लेस और करोल बाग के बीच यात्रियों ढोने का काम करते थे. गरीबी की वजह से मजबूर धर्मपाल को इस वक्त अधिक यात्री नहीं मिलते थे, इनमें से कुछ उनके साथ गाली-गलौज भी करते थे.



गरीबी से तंग आकर उन्होंने अपना तांगा बेच दिया और 1953 में चांदनी चौक में एक दुकान किराए पर ले ली जिसका नाम रखा गया महाशिया दी हट्टी (MDH) और वह करना शुरू किया जिसके लिए वह जाने जाते थे- मसालों का व्यापार. अब उनको लेकर कितनी ही तरह की बातें होती हैं.

वालचंद हीराचंद


सेठ वालचन्द हीराचन्द को देश में जहाज बनाने, एयरक्राफ्ट बनाने की शुरआत की थी. इसके रास्ते वे देश के दूसरे व्यापारों में भी आए और एक सफलतम कारोबारी बने. उनका जन्म 23 नवम्बर 1882 गुजरात के जैन परिवर में हुआ था. ऊपर के लोगों की तुलना में इन्‍होंने स्नातक तक पढ़ने के बाद पढ़ाई छोड़ी थी. लेकिन इनका पाला भी उच्चस्तीय शिक्षा नहीं पड़ा था.



पढ़ाई बीच में ही छोड़ने के बाद उन्होंने पहले फैमिली बिजनेस करना शुरू दिया. लेकिन बाद में उन्होंने घरेलू व्यापार को छोड़ दिया और खुद से जहाजरानी, वायुयान निर्माण, कार निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और सफलता के कदम चूमे.

साभार: news 18 hindi


Tuesday, 7 May 2019

DEWANG AGRAWAL, MANHAR BANSAL, ICSE INDIA TOPPER,वैश्य समाज का जलवा







वैश्य समाज की सम्पूर्ण जानकारी के लिए पढ़े
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साभार: अमरउजाला  

INDIA TOPPER तरु जैन ने सोशल मीडिया से दूरी बनाए बगैर की पढ़ाई; 500 में से 499 अंक आए

तरु जैन ने सोशल मीडिया से दूरी बनाए बगैर की पढ़ाई; 500 में से 499 अंक आए

अपनी टॉपर बेटी का मुंह मीठा कराते माता-पिता।

जयपुर की तरु जैन ने 500 में से 499 अंक लाकर सीबीएसई 10वीं में टॉप किया है। तरु ने इस सफलता का क्रेडिट अपने टीचर्स, फ्रेंड्स व फैमिली को दिया है। तरु ने कहा कि वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से सीए करना चाहती है या इकॉनोमिक ऑनर्स करना चाहती हूं। उन्होंने कहा कि साेशल मीडिया से दूरी बनाए बगैर पढ़ाई की और यह मुकाम हासिल किया। तरु के पिता आईसीआईसीआई बैंक में चीफ मैनेजर (आई टी) हैं और मां नेहा जैन हाउस वाइफ हैं।

मैंने इतना एक्सपैक्ट नहीं किया था

तरु ने कहा, मैं इस बड़ी सफलता का क्रेडिट अपनी फैमिली, फ्रेंड्स व टीचर्स को देती हूं। मैंने इतना अच्छा परिणाम एक्सपैक्ट नहीं किया था। भविष्य में क्या करना है के बारे में पूछे जाने पर तरु ने कहा, मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी से सीए करना चाहती हूं।

वैश्य समाज के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए पढ़िए,  "हमारा वैश्य समाज "

सोशल मीडिया से नहीं बनाई दूरी

तरु ने कहा कि वह आधे घंटे सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं। मैं कभी नहीं कहूंगी की सोशल मीडिया से पूरी तरह कटे रहें। यह रुटीन पढ़ाई के दौरान भी जारी रहा। मैं तीन-चार घंटे रोज पढ़ाई करती हूं। मेरी मैथ्स और स्टेटिक्स में हमेशा रुचि रही है। कई बार मुझे लगता है कि जो मैंने पढ़ा है उसे भूल जाती हूंं ऐसे स्थति में मेरे पेरेंंट्स मेरी मदद करते थे।

बेटी पर गर्व

तरु के पिता धर्मेंद्र जैन ने कहा उनकी बेटी ने न केवल माता-पिता का बल्कि राजस्थान का भी नाम रोशन किया है। उन्होंने कहा कि हमें 97 प्रतिशत तक की उम्मीद थी, लेकिन इतनी उम्मीद नहीं थी। धर्मेंद्र ने कहा कि आज गर्व महसूस हो रहा है, हम गौरवान्वित है। वहीं तरु की मां नेहा जैन ने कहा कि आज मुझे मेरी बेटी के नाम से जाना जा रहा है। इस खुशी को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। यह गर्व करने लायक है। उन्होंने बताया कि हमारा संयुक्त परिवार है और तरु सबके साथ घुलमिल रहती है।

वह पढ़ाई के साथ और कामों में भी रुचि लेती है। नेहा ने कहा कि तरु को सपोर्ट करने की ज्यादा जरूरत नहींं पड़ी। यह खुद परफेक्ट है। इस पर ज्यादा प्रेशर डालने की जरूरत नही है। उन्होंने कहा कि हम तरु के सपने करने के लिए उसके साथ हैं। उसे अपने फैसले लेने की पूरी आजादी है। वह आगे जो भी पढ़ाई या करियर के बारे में तय करेगी हम उसका पूरा साथ देंगे। आगे सब कुछ इसके ऊपर छोड़ रखा है।

साभार: दैनिक भास्कर

वैश्य समाज का नाम रोशन करते दसवी के टोपर

वैश्य समाज के बच्चो ने फिर से समाज का नाम रोशन किया हैं. 10th CBSE के परिणाम में सम्पूर्ण भारत से टॉप थ्री पोजीशन पर 64 बच्चो में 25 वैश्य समाज से हैं. बहुत बधाई आप सभी को.  कुछ तो बात हैं की हस्ती मिटती नहीं हमारी. हमें आरक्षण की भीख नहीं चाहिए. बहुत हिम्मत हैं  हम में. अपना रास्ता खुद बनाते हैं.  

1st. position.

1. TARU JAIN                        JAIPUR
2. YOGESH GUPTA              JAUNPUR
3. VATSAL VARSHNEYA     MEERUT
4. APOORVA JAIN                GHAZIABAD
5. SHIVANI LATH-                NOIDA
6. DHATRI MEHTA               THANE
7. ANKIT SAHA                    HYDERABAD
8. SHIVIKA DUDANI           DELHI

2nd POSITION

1. KASHVI JAIN                   AMBALA
2. DRISHTI GUPTA              PANCHKULA
3 AYUSHI SHAH                  AJMER
4. MALLIKA MANDAL       NOIDA
5. RADHIKA GUPTA            NOIDA
6. MANAN GUPTA               GHAZIABAD
7. NEHA JAIN 

3rd POSITION

1. SHUBH AGRAWAL          MEERUT
2. RAGHAV SINGHAL         GHAZIABAD
3. ANMOL GUPTA                NOIDA
4. MEHUL GARG                  GHAZIABAD
5. ISHITA AGRAWAL           GHAZIABAD
6. RIDHIMA GUPTA             GHAZIABAD
7. PIYA GUPTA                      GURUGRAM
8. NEHA JAIN                        DELHI

वैश्य समाज के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग " हमारा वैश्य समाज" पर जाए 

https://praveengupta2010.blogspot.com/

Tuesday, 16 April 2019

कभी दुकानों से भगा दिया जाता था, आज है 1500 करोड़ के बिज़नेस के मालिक

कभी दुकानों से भगा दिया जाता था, आज है 1500 करोड़ के बिज़नेस के मालिक



Rupa Group Success Story : इस कंपनी को इस मुकाम तक पहुचाने में दो भाइयों की जोड़ी ने अपने पूरे जीवन को समर्पित कर दिया है उनके नाम है प्रहलाद राय अग्रवाल (74) और कुंज बिहारी अग्रवाल (64) जो व्यापार क्षेत्र में KB और PRके नाम से विख्यात हैं। दोनों मारवाड़ी व्यापारिक विरासत से आये है जिन्होंने अपना पूरा जीवन व्यापार में लगा दिया है।

जब KB से व्यापार के बारे में पूछा गया तो उनके अनुसार – ” व्यापार एक तरह से एडजस्टमेंट है जिसमें हमेशा मार्कट की गति के अनुसार अपने आप को अच्छा बनाते हुए कैसे आप वस्तुओं को क्वालिटी के साथ बेच सकते हो और अपनी मार्केट वैल्यू बनाते हो।“

इसी फिलॉसफी पर काम करते हुए आज रूपा अपने व्यापार क्षेत्र (इनरवेयर बिज़नेस) में लीडर बनकर उभरा है जो सतत विकास एवं प्रयासों का साझा फल है। यह एक कहानी है जो लगातार बन रहे मार्केट में मौकों को भुनाने के साथ ही नवीनतम तकनीक और कठिन मेहनत से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

जैसे जैसे लोगों की आमदनी बढ़ती गई है वैसे ही इस क्षेत्र में भी कॉम्पिटिशन बढ़ता गया है , इनरवियर बिज़नेस में आज LUX, VIP, Dollar और Jockey जैसे ब्रांड मौजदू है लेकिन RUPA एक मार्केट लीडर के रूप में उभरा है जो इस कंपनी के लीडरशिप को दर्शाता है ।

रूपा ग्रुप के इनरवियर ब्रांड्स 

सबसे खास चीज़ जो RUPA ने अन्य प्रतिस्पर्धीयों से अलग की है वो है अपने ही क्षेत्र में ब्रांड को विकसित करना। जब Rupa ब्रांड पूरे भारत मे अच्छा बिज़नेस कर रहा था तब इन्होंने MacroMan नाम से एक प्रीमियम ब्रांड मार्किट में उतारा.

जो आज उनका फ्लैगशिप ब्रांड बन गया है जिसकी पहुंच अब निम्न और मध्यम वर्गीय ग्राहकों के साथ ही उच्च वर्ग ग्राहकों में भी अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा है। इस ब्रांड के द्वारा इन्होंने ग्राहकों को एक प्रीमियम अनुभव कराने का एक सफल उदाहरण पेश किया है।

इस तरह के सफल प्रयोगों के साथ इंडस्ट्री लीडर बनना RUPA के लिये आसान होता गया , इन ब्रांड्स ने रेवेन्यू को पांच गुना करते हुए 800 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया है तथा सालाना लगभग 20% की दर से इनका रेवेन्यू और प्रॉफिट बढ़ रहा है .

इनके पास अब पूरी ब्रांड चैन बन चुकी है जो किड्स से लेकर एडल्ट्स तथा निम्न से उच्च वर्गों में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब रहे हैं।



Rupa Group Success Story


तो कहानी शुरू होती है 1968 में जब 19 वर्षीय PR अग्रवाल ने वो शुरुआत की है जो आज RUPA Group के नाम से हमारे सामने है। इनकी कहानी भी राजस्थान के मारवाड़ी परिवारों से मिलती है जिन्होंने ने रोज़गार के नए अवसरों के लिए राजस्थान को छोड़कर देश के अन्य क्षेत्रों की तरफ रुख किया था।

रूपा के विज्ञापन 

PR के पिताजी शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले के रहने वाले थे, लगातार अकाल और खेती के चौपट होने के कारण कोलकाता शिफ्ट होने का निर्णय लिया। कोलकाता में बहुत ही कम पूंजी में अपना व्यापार शुरू किया और पूरा परिवार यही विस्थापित हो गया ।

PR शुरुआत में कोलकाता में एक कॉलेज खोलना चाहते थे लेकिन साथ ही अपने परिवार के बिज़नेस में भी लगातार काम करते रहे। हमेशा मेहनती और नए आइडियाज पर काम करने वाले PR अपने पिताजी से विरासत में मिले व्यापार से ज्यादा खुश नही थे।

इसी तड़प और नए करने की चाहत ने 1962 में बिनोद होजरी नाम से मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की नींव डाली लेकिन अगले 6 सालों में यह व्यापार नही चल पाया और वो घाटे में आ गए।

अपने कारोबार या यूं कहें कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए 1968 में इन्होंने RUPA नाम से इनरवेयर उत्पादन का काम शुरू किया जो उनके पिछले से कारोबार से कई गुना कारगर साबित हुआ।

1960 के दशक में Dora नाम से एक इनरवेयर ब्रांड बहुत ही पॉपुलर होने के साथ ही मार्किट लीडर था। PR का सीधा सामना अब Dora से ही होने वाला था , जब भी रिटेलर्स के पास अपने ब्रांड Rupa को बेचने जाते तो उन्हें दुकानों से भगा दिया जाता था।

जब रिटेलर्स उनका प्रोडक्ट नही ले रहे है तो उन्होंने व्हॉल सेलर्स को 2 महीने तक माल क्रेडिट पर देना शुरू कर दिया तथा धीरे धीरे Rupa ब्रांड मार्किट में अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रहा लेकिन अभी भी DORA से प्रतिस्पर्धा बहुत दूर की बात थी।

एक  समारोह के दौरान ग्रुप  संस्थापक अग्रवाल बंधू 

कहते है जब इंसान कठिन मेहनत कर रहा होता है तो ईश्वर भी उसका साथ देता है , ऐसा ही कुछ PR के साथ भी हुआ । अगले तीन साल में Dora ने अपने रिटेल क्षेत्र में ध्यान बढ़ाने के चलते कम लाभ वाले इनरवेयर बिज़नेस को बंद कर दिया ।

ये मौका PR के लिए एक मार्केटिंग अवसर बन कर आया और इसको PR ने हाथों हाथ लिया और जुट गए Rupa को ब्रांड बनाने में , इनके इस काम मे छोटे भाई KB का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

कोलकाता के आसपास अपनी पैठ बनाने के बाद RUPA ने पूरे देश मे अपनी पहुंच बनाने का फैसला लिया और अच्छी क्वालिटी के साथ ही आक्रामक मार्केटिंग के साथ ही अपने क्षेत्र में उतर गए ।

Rupa ने अपने आप को मार्कट में बनाये रखने के लिए आउटसोर्सिंग के बजाय ब्रांड क्रिएशन और मार्केटिंग पर ज्यादा ध्यान दिया । इसी के फलस्वरूप 1980 में बॉलीवुड फिल्मों के कैसेट्स पर एडवरटाइजिंग देने का फैसला किया जिससे पूरे देश मे इनकी पहुंच बनी और सेल्स में जोरदार बढ़त देखने को मिली।

लेकिन असली सफलता 1990 में आज तक के साथ एडवरटाइजिंग के बाद मिली और उनकी टैग लाइन ‘ ये आराम का मामला हैं‘ सभी की जुबान पर चढ़ गई और आज का RUPA ब्रांड अब मार्केट लीडर बन गया है । अब बाकी की कहानी मार्केट की सफलता की कहानियां बन गई है ।

PR और KB दोनों भाइयों ने मिलकर अपनी व्यापारिक कुशलता एवम मेहनत से भारतीयों का सबसे पसंदीदा ब्रांड खड़ा कर लिया है ।


RUPA के बारे में रोचक तथ्य: 


रूपा के ब्रांड – 

Softline, 
Euro, 
Bumchums, 
Torrido, 
Thermocot, 
Macroman, 
Footline and 
Jon 


इनरवेयर मार्केट लीडर 


सेलिब्रिटी जो रूपा ब्रांड से जुड़ चुके हे – Govinda, Sanjay Dutt, Aishwarya Rai, Ronit Roy, Ranveer Singh, Sidharth Malhotra, Bipasha Basu 

Revenue – 1500 Carore 



सीखने योग्य बातें


इस RUPA ग्रुप के सफर से कई वास्तविक अनुभव निकल कर आये है जिन्हें अपने जीवन मे आत्मसात कर सकते है। सबसे महत्वपूर्ण बात सीखने को जो मिलती है वो अंत तक लड़ते रहना और कितनी भी विषम परिस्थितियों में भी हार नहीं मानना ।

हम भी शरुआती विफलताओं से घबरा कर अपना कार्य बीच मे ही छोड़ देते है जिससे हमारा सारा किया गया कार्य व्यर्थ हो जाता है। हमें अंत तक लड़ना चाहिए और हमेशा विफलता के बाद भी एक और प्रयास के लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार रखना चाहिए।